Consumer Court (Hindi)

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उपभोक्ता न्यायालय क्या होते हैं?

उपभोक्ता न्यायालय विशेष उद्देश्य के लिए बनाए गए न्यायालय हैं, जो निर्माताओं, सेवा प्रदाताओं और उपभोक्ताओं के बीच मौजूद शक्ति के असंतुलन को ध्यान में रखते हुए, उपभोक्ताओं की शिकायतों के निवारण के लिए स्थापित किए गए हैं। इन्हें नागरिक न्यायालयों की लंबा समय लेने वाली प्रक्रियाओं के विकल्प के रूप में गठित  किया गया है।[1]

इन्हें शुरुआत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986[2] के तहत स्थापित किया गया था और फिलहाल ये  उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत कार्य कर रहे हैं। इस अधिनियम के तहत ने तीन संस्थाओं  की स्थापना का प्रावधान किया गया है - जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग और राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग।[3]

इस अधिनियम के तहत जो कानूनी उपाय दिए गए हैं वे दूसरे  कानूनों के तहत उपलब्ध उपायों के अतिरिक्त हैं, न कि उनके विपरीत।[4]

उपभोक्ता न्यायालय की  आधिकारिक परिभाषा

उपभोक्ता न्यायालयों को उन विवादों के आधार परिभाषित किया जाता है जिनका वे निपटारा करते हैं।

अधिनियम के तहत 'उपभोक्ता विवाद' को ऐसे विवाद के रूप में परिभाषित किया गया है जिनमें जिस व्यक्ति के खिलाफ शिकायत की गई है, वह व्यक्ति शिकायत में लगाए गए आरोपों को अस्वीकार करता है या उन पर आपत्ति व्यक्त  करता है।[5] अधिनियम के तहत 'उपभोक्ता' वह व्यक्ति है जो किसी वस्तु या सेवा को किसी भुगतान के, या भुगतान के वादा के, या आंशिक भुगतान के बदले खरीदता है और इसमें ऐसे उपयोगकर्ता या लाभार्थी भी शामिल हैं जो मूल खरीदार की अनुमति के साथ उस वस्तु या सेवा का उपयोग करते हैं। लेकिन, इसमें ऐसे व्यक्ति शामिल नहीं हैं जो इन वस्तुओं या सेवाओं को आगे दोबारा बेचने  या किसी वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए हासिल करते हैं।[6]

तथ्यों से जुड़े गहरे विवाद वाले मामलों  का या धोखाधड़ी या ठगी जैसे अपराधों वाले मामलों का निपटारा उपभोक्ता न्यायालय नहीं कर सकते।[7]

विभिन्न प्रकार के उपभोक्ता न्यायालय

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अनुसार, तीन प्रकार के उपभोक्ता न्यायालय हैं:

जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग

धन राशि आधारित अधिकार क्षेत्र

राज्य सरकार द्वारा हर जिले में एक जिला स्तर पर उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग स्थापित किया जाता है। 50 लाख रुपये तक की वस्तुओं या सेवाओं और क्षतिपूर्ति के मामले इनके अधिकार क्षेत्र में आते हैं।[8] धन राशि आधारित अधिकार क्षेत्र से जुड़ी  आपत्ति जिला आयोग में ही उठाई जानी चाहिए, अपीलीय स्तर पर नहीं।[9]

भौगोलिक अधिकार क्षेत्र

शिकायत उस जिला आयोग में दायर की जा सकती है जिसके स्थानीय क्षेत्राधिकार में:

1. शिकायत दर्ज करने के समय, विपरीत पक्ष या एक से ज़्यादा विपरीत पक्ष होने पर, हर एक विपरीत पक्ष निवास करता है, व्यापार करता है, शाखा कार्यालय रखता है या व्यक्तिगत लाभ के लिए काम करता है;

2. शिकायत दर्ज करने के समय, एक से ज़्यादा विपरीत पक्ष होने पर, कोई भी विपरीत पक्ष निवास करता है, व्यापार करता है, शाखा कार्यालय रखता है या व्यक्तिगत लाभ के लिए काम करता है;

3. शिकायत का कारण पूरी तरह या आंशिक रूप से पैदा होता है;

4. शिकायतकर्ता निवास करता है या व्यक्तिगत लाभ के लिए काम करता है।[10]

राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग

राज्य सरकार द्वारा राज्य स्तर पर एक राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग स्थापित किया जाता है।[11] यह आमतौर पर राज्य की राजधानी में होता है लेकिन राज्य सरकार द्वारा राजपत्र में  अधिसूचना जारी किए जाने के माध्यम से यह किसी दूसरे  स्थान से  भी काम कर सकता है।[12]

धन राशि आधारित अधिकार क्षेत्र

राज्य आयोग को 50 लाख से 2 करोड़ रुपये के बीच की वस्तुओं या सेवाओं के मामलों पर विचार करने का अधिकार है। साथ ही राज्य आयोग राज्य के भीतर जिला आयोगों के आदेशों के विरुद्ध अपील के मामलों की सुनवाई भी करता है।

भौगोलिक अधिकार क्षेत्र

शिकायत उस राज्य आयोग में दायर की जा सकती है जिसके अधिकार क्षेत्र में:

1. विपरीत पक्ष या एक से ज़्यादा विपरीत पक्ष होने पर, हर एक विपरीत पक्ष निवास करता है, व्यापार करता है, शाखा कार्यालय रखता है या व्यक्तिगत लाभ के लिए काम करता है;

2. शिकायत दर्ज करने के समय, एक से ज़्यादा विपरीत पक्ष होने पर, कोई भी विपरीत पक्ष निवास करता है, व्यापार करता है, शाखा कार्यालय रखता है या व्यक्तिगत लाभ के लिए काम करता है;

3. शिकायत का कारण पूरी तरह या आंशिक रूप से पैदा होता है

4. शिकायतकर्ता निवास करता है या व्यक्तिगत लाभ के लिए काम करता है[13]

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग

केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग स्थापित किया गया है।

2 करोड़ रुपये से अधिक की वस्तुओं या सेवाओं के मामले इसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं । राज्य आयोग के किसी आदेश के खिलाफ  राष्ट्रीय आयोग में अपील की जा सकती है, और सर्वोच्च न्यायालय में अपील न किए जाने पर राष्ट्रीय आयोग का फैसला अंतिम होता है।

सरकारी डेटाबेस में उपभोक्ता न्यायालय

कॉनफोनेट (CONFONET)

कॉनफोनेट (देश में उपभोक्ता मंचों के कंप्यूटरीकरण और कंप्यूटर नेटवर्किंग) एक इंटरनेट-आधारित केस (मामला) मॉनिटरिंग (निगरानी) डेटाबेस है जो जानकारी उपलब्ध कराने का अलावा  देश में उपभोक्ता न्यायालयों  के प्रक्रियाओं  को स्वचालित (ऑटोमेटिक) बनाता है। इसकी केस मॉनिटरिंग प्रणाली  उपयोगकर्ताओं को तीनों स्तरों के उपभोक्ता आयोगों की सभी गतिविधियों को स्वचालित  बनाने के लिए एक एकल-विंडो समाधान उपलब्ध  कराती है। इस सॉफ्टवेयर की सहायता से शिकायतों का पंजीकरण, न्यायालय की कार्यवाही की रिकॉर्डिंग, नोटिस जारी करना, रिकॉर्ड रखना, निर्णयों की रिकॉर्डिंग, कॉज (सुनवाई के मामलों) की सूची तैयार करना  और डेटा रिपोर्ट तैयार करने जैसी प्रक्रियाओं को आसानी से किया जाता है।

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यह केस मॉनिटरिंग प्रणाली नीचे दी गई सुविधाओं के ज़रिए  उपभोक्ता आयोगों की प्रक्रियाओं को स्वचालित बनाता है:

  1. स्वचालित रूप से बनाई गई कॉज (सुनवाई के मामलों की) सूची
  2. मामलों की स्थिति की जानकारी
  3. मामले के इतिहास का संक्षिप्त सारांश
  4. मामले की संख्या, याचिकाकर्ता, प्रतिवादी आदि जैसी जानकारी के आधार पर मामलों को खोजने की सुविधा
  5. शब्दों के आधार पर न्यायालयों के फैसलों को खोजने की सुविधा
  6. एक मास्टर एंट्री की मदद से सूचना हासिल करने की  स्वचालित (ऑटोमेटिक)  सुविधा
  7. विभिन्न प्रकार की डेटा रिपोर्ट तैयार करने की सुविधा[14]
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उपभोक्ता मामलों के विभाग की आधिकारिक वेबसाइट (भारत सरकार)

इस आधिकारिक डेटाबेस की देखरेख भारत सरकार के उपभोक्ता मामले , खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के उपभोक्ता मामला विभाग द्वारा की जाती है। इस वेबसाइट पर दी गई जानकारी की मदद से उपभोक्ता पूरी जानकारी के साथ फैसले ले सकते हैं। [15]  है। साइट पर सभी अपडेट किए गए नियम और विनियम उपलब्ध कराए गए यहीं ताकि उपभोक्ता अपने अधिकारों के बारे में जागरूक हों। इस पर  एक मूल्य निगरानी प्रणाली भी है जिसमें  बाजार में वस्तुओं की कीमतों की सूची दी जाती है । इन कीमतों का विश्लेषण मूल्य निगरानी प्रभाग द्वारा किया जाता है और इस जानकारी की मदद से सरकार ज़रूरी  वस्तुओं की उपलब्धता में कमी को रोकने के लिए उचित समय पर नीतिगत हस्तक्षेप करती है। वेबसाइट का होमपेज उपयोगकर्ताओं को उपभोक्ता मामलों से जुड़ी जानकारी देने वाले अन्य ऑनलाइन उपभोक्ता डेटाबेस से जोड़ता है।

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) की आधिकारिक वेबसाइट

इसकी वेबसाइट पर नीचे दी गई  जानकारी उपलब्ध है:

  1. केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) की स्थापना
  2. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019
  3. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के तहत बनाए गए नियम 2020
  4. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत विनियम 2020
  5. सामान्य जानकारी - राष्ट्रीय आयोग में मामलों के दायर करने की प्रक्रिया
  6. मामलों के दायर करने, निपटारे और लंबित होने के बारे में जानकारी
  7. नोटिस
  8. लिंक साइट - उपभोक्ता मामलों का विभाग/सर्वोच्च न्यायालय /उच्च न्यायालय
  9. राज्य आयोगों और जिला आयोगों के पते, आदि
  10. NCDRC के महत्वपूर्ण आदेश[16]

ई-दाखिल

ई-दाखिल  भारत सरकार के उपभोक्ता मामलों के विभाग द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के तहत की गई एक पहल है। इसके पोर्टल पर उपभोक्ता न्यायालयों में ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने और शिकायत दर्ज करने के लिए शुल्क का ऑनलाइन भुगतान करने की सुविधा उपलब्ध है।[17]

अब तक, ई-दाखिल सुविधा 23 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में उनके राज्य आयोग और जिला आयोगों के लिए शुरू की गई है और 7 सितंबर 2020 को NCDRC के लिए भी शुरू की गई है। कोई भी उपभोक्ता/वकील अपने पंजीकृत मोबाइल पर भेजे गए OTP के माध्यम से उचित प्रमाणों  के साथ ई-दाखिल सॉफ्टवेयर के ज़रिए पंजीकरण कर सकता है। उसके बाद शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जा सकती है।

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ई-दाखिल को सरकारी सेवा केंद्रों से भी जोड़ा गया है ताकि इसकी सेवाएं देश के दूरदराज के और ग्रामीण इलाकों में रहने वालों की पहुंच में आ सके।[18]

उपयोगकर्ता केवल ई-दाखिल पोर्टल के ज़रिए दाखिल किए गए  मामलों के लिए ही ऑनलाइन उत्तर और प्रतिवाद दाखिल कर सकते हैं।  पहले से दायर किए गए या ऑफलाइन दायर किए गए मामलों के लिए अभी तक इसकी व्यवस्था नहीं की गई है।

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उपभोक्ता न्यायालयों पर किए गए अध्ययन

उपभोक्ता न्यायालयों की पुनर्कल्पना: न्यायालय की बुनियादी सेवाओं को  में स्थानिक डिजाइन के दृष्टिकोण से देखना

यह रिपोर्ट[19] विधि की  जल्दी इनोवेशन लैब  श्रृष्टि कला, डिजाइन और प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा  विषयों की सीमाओं के पार जाकर न्यायालयों को देखने का एक  प्रयास है। इस रिपोर्ट में  उपभोक्ता न्यायालय की बुनियादी सेवाओं को बदलने का एक ऐसा ब्लूप्रिंट सुझाया गया है जो पक्षकारों के लिए प्रक्रिया को आसान बनाएगा, जिसे अन्य न्यायालयों में भी लागू किया जा सकता है, , जिसका बड़े स्तर पर विस्तार भी किया जा सकता है और जो उपभोक्ता संरक्षण कानूनों को प्रभवी रूप से लागू किया जा सकता है। विधि की न्याय, पहुंच और भारत में देरी कम करने की पहल (जल्दी) ने इससे पहले 665 जिला न्यायालयों की बुनियादी सेवाओं  पर "बेहतर न्यायालयों का निर्माण" नाम का एक सर्वेक्षण किया था। आने वाले समय में, यह पहल न्यायालयों की बुनियादी सेवाओं के अन्य पहलुओं पर काम करने की योजना बना रही है, जैसे महिलाओं के लिए एक आदर्श आपराधिक न्याय अदालत सुनिश्चित करना, इत्यादि ।

न्याय को संस्थागत बनाना: ग्राम न्यायालय और उपभोक्ता न्यायालय

यह लेख[20] न्याय तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए  न्यायपालिका द्वारा अपनाए गए उम्मीद पैदा करने वाले  दो  कदमों  पर रोशनी डालता है: (a) ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 के तहत स्थापित ग्राम न्यायालय और (b) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत स्थापित किए गए उपभोक्ता न्यायालय। ये भारत में मामलों को औपचारिक न्यायालयों के दायरे के बाहर ले जाने के उन '**एकजुट प्रयासों**' का भी अच्छे उदाहरण हैं, जिनके तहत वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र को अलग-अलग रूप में बढ़ावा दिया जा रहा है। । इस लेख में यह विश्लेषण भी किया गया है कि किस तरह उपभोक्ता न्यायालय  सुधारों के केंद्र में रहे हैं।[21]

अंतर्राष्ट्रीय अनुभव

विभिन्न देशों में उन  देशों के उपभोक्ता संरक्षण कानूनों को लागू करने के लिए अलग-अलग प्रणालियां हैं।

अमेरिका में, फेडरल ट्रेडिंग कमीशन, उपभोक्ता वित्तीय संरक्षण ब्यूरो और खाद्य एवं औषधि प्रशासन जैसी विभिन्न केंद्रीय  एजेंसियां उपभोक्ता संरक्षण कानूनों को लागू करती हैं। यूनाइटेड किंगडम में, इन कानूनों को लागू करने की ज़िम्मेदारी दो प्राथमिक एजेंसियां की है: ट्रेडिंग स्टैंडर्ड सर्विसेज और कम्पेटेशन एंड मार्केट्स अथॉरिटी। ऑस्ट्रेलिया में, ऑस्ट्रेलियाई उपभोक्ता कानून को केंद्र और राज्य के स्तर पर ऑस्ट्रेलियाई प्रतिस्पर्धा और उपभोक्ता आयोग द्वारा और निचले स्तर ओर उपभोक्ता संरक्षण एजेंसियों द्वारा लागू किया जाता है। जापान में,  उपभोक्ता संरक्षण कानूनों को लागू करने की  जिम्मेदारी उपभोक्ता मामलों की ा एजेंसी (CAA) पर है और विभिन्न मंत्रालयों के अंतर्गत आने वाले विशिष्ट कानूनों को लागू करने के लिए विभिन्न निकाय हैं।[22]

संदर्भ

  1. Ankur Saha & Ram Khanna Sr., Evolution of Consumer Courts in India: The Consumers Protection Act 2019 and Emerging Themes of Consumer Jurisprudence, 9 IJCLP 115 (2021), Abstract.
  2. Repealed by Consumer Protection Act, 2019.
  3. See sections 28, 42 and 53 of the Consumer Protection Act, 2019.
  4. Enathu Services Co-op Bank v The Consumer Disputes Redressal Forum, AIR 2011 Ker 145
  5. See Section 2 of the Consumer Protection Act, 2019
  6. Section 2 (7), Consumer Protection Act, 2019
  7. C.M.D., City Union Bank Limited v. R. Chandramohan 2023 SCC OnLine SC 341, ❡12
  8. https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1786342
  9. Empire Builders George Residency, Goa v Anthony Xavier Andrade, AIR 2009 1796 NCC
  10. Section 34, Consumer Protection Act, 2019
  11. See Section 42 of the Consumer Protection Act, 2019
  12. राज्य सरकार सूचनापत्र द्वारा राज्य आयोग के क्षेत्रीय बेंचों की स्थापना कर सकती है, जिस स्थान पर वह उचित समझे। (उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 42 के अनुसार)
  13. See Section 47 of the Consumer Protection Act, 2019.
  14. CONFONET official website, available at:  https://confonet.nic.in/Faqs.html
  15. Official website of the Department of Consumer Affairs, available at: https://consumeraffairs.nic.in/vision-and-mission
  16. Official Website of NCDRC: https://ncdrc.nic.in/rti.html
  17. eDaakhil: https://edaakhil.nic.in/
  18. Digital Seva Connect: https://connect.csc.gov.in/account/authorize?state=1684951661610&response_type=code&client_id=d8b04cfe-f783-4ef2-ce4d-e95023bf7c0d&redirect_uri=https://edaakhil.nic.in/edaakhil/faces/cscloginresponse.xhtml
  19. VIDHI Centre for Legal Policy, Re-Imagining Consumer Forums: Introducing a spatial design approach to court infrastructure (2021): https://vidhilegalpolicy.in/wp-content/uploads/2021/02/Re-Imagining-Consumer-Forums-Full-Report.pdf
  20. Ashwini Obulesh, Institutionalising Justice: Gram Nyayalayas and Consumer Courts: https://www.dakshindia.org/state-of-the-indian-judiciary/34_chapter_19.html#_idTextAnchor485
  21. Robert Moog. 2008. ‘The Study of Law and India’s Society: The Galanter Factor’, Law and Contemporary Problems, 71(2): 129–137, p. 129. Also available online at http://scholarship.law.duke.edu/cgi/viewcontent.cgi?article=1470&context=lcp.
  22. Comparison of Consumer Laws in Different Countries: https://www.lexology.com/library/detail.aspx?g=1c2dfca4-1893-49e7-8590-35ff02499515#:~:text=By%20far%20UK%20and%20Australia,redressal%20and%20other%20supporting%20statutes.&text=In%20India%20a%20consumer%20has,has%20been%20paid%20or%20promised