Gram Nyayalaya (Hindi)

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ग्राम न्यायालय क्या होते हैं

ग्राम न्यायालय (शब्दशः, “गाँव के न्यायालय) ग्रामीण या गाँव स्तर के न्यायालय हैं जिन्हें  कुछ ख़ास  उद्देश्यों के लिए  स्थापित किया गया है: न्याय को नागरिकों के दरवाज़े  तक ले जाना और सामाजिक, आर्थिक या अन्य पहलुओं की वजह से  न्याय हासिल करने में  आने वाली रुकावटों को  दूर करना।[1] भारत के विधि आयोग ने, तेज़, प्रभावी और बिना खर्च के न्याय हासिल करने में आम आदमी की मदद करने के उद्देश्य से, अपनी 114वीं रिपोर्ट [2]में इन न्यायालयों की स्थापना की सिफारिश की थी। इसके बाद , संसद ने ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008[3] पारित किया, जिसने इन जमीनी स्तर के न्यायालयों को ठोस रूप दिया ।

ये न्यायालय, जिनका क्षेत्राधिकार राज्य सरकारों द्वारा संबंधित उच्च न्यायालयों के साथ सलाह-मशवरा करने के बाद तय  किया जाता है[4], न्याय प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस अधिनियम के तहत नियुक्त किए गए न्यायाधिकारियों को  गाँवों में मोबाइल न्यायालय चलाने और कार्यवाही करने का अधिकार दिया गया है।[5]

आधिकारिक परिभाषा

ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 की  धारा 2(a) के अनुसार, ग्राम न्यायालय को अधिनियम की धारा 3 की  उप-धारा (1) के तहत स्थापित किए गए न्यायालय के रूप में परिभाषित किया गया है।

ग्राम न्यायालय से संबंधित कानूनी प्रावधान

स्थापना

ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 की धारा 3 राज्य सरकारों को, उच्च न्यायालयों के साथ सलाह-मशवरा करने के बाद, जिले में बीच के स्तर की हर  पंचायत के लिए या कुछ पंचायतों के समूह के लिए ग्राम न्यायालय स्थापित करने का अधिकार देती है। न्यायालय के मुख्यालय संबंधित पंचायत में या राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित दूसरे किसी  स्थान पर स्थापित किए जाते हैं ।

संरचना

ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 की धारा 5 के तहत, उच्च न्यायालय के साथ सलाह-मशवरा करने के बाद ग्राम न्यायालयों की अध्यक्षता करने वाले न्यायाधिकारियों की नियुक्ति करना राज्य सरकार का कर्तव्य है।  न्यायाधिकारी की योग्यता वही है जो प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की होती हैं, और इनकी नियुक्ति में आरक्षण का  प्रावधान भी किया गया है। वेतन प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट के जितना होता है (धारा 7)।

क्षेत्राधिकार

ग्राम न्यायालयों का भौगोलिक  क्षेत्राधिकार राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित किया जाता है। राज्य सरकार  ग्राम न्यायालयों को मोबाइल  न्यायालयों के रूप में कार्य करने की अनुमति भी दे सकती हैं । ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 की धारा 11 ग्राम न्यायालयों को आपराधिक और दीवानी, दोनों ही तरह के मामलों पर अधिकार क्षेत्र देती  है, जिसमें संबंधित उच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों के अनुसार धन संबंधी क्षेत्राधिकार शामिल भी है। ग्राम न्यायालय इस अधिनियम की पहली अनुसूची में शामिल किए गए अपराधों और दूसरी अनुसूची में उल्लिखित दीवानी मुकदमों का निपटारा कर सकते हैं।[6] ये आम  दीवानी (सिविल) और आपराधिक न्यायालयों के साथ-साथ काम करते हैं  । विशेष साक्ष्यों पर विचार करने की अनुमति भी दी जा सकती है (धारा 30)।

प्रक्रिया

इस अधिनियम के तहत आपराधिक मामलों के लिए दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 को शामिल किया गया है, और इसके तहत प्रक्रिया को सरल बनाने पर जोर देता है (धारा 18 और 19)। दीवानी मामलों में, न्यायालय दीवानी (सिविल) प्रक्रिया संहिता से अलग प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हैं,, और तेजी से न्याय दे पाने के नज़रिए से उन्हें कुछ प्रक्रियाओं को खुद से तय करने का अधिकार दिया गया है  (धारा 24(6))। धारा 24(8) के अनुसार, ग्राम न्यायालय को मामलों को उनके पंजीकरण  स्थापना की तारिख  से छह महीने के भीतर निपटाना होता है। यह प्रावधान ग्रामीण क्षेत्रों में समय पर मामलों का निपटारा करने और तेज़ी से न्याय करने  की आवश्यकता पर जोर देता है।[7]

आपराधिक और दीवानी (सिविल), दोनों ही तरह के मामलों में, ग्राम न्यायालय के निर्णयों के खिलाफ अपील, फैसला सुनाए जाने के छह महीने के अंदर दायर की जा सकती है। आपराधिक मामलों में अपील सत्र न्यायालय में और दीवानी मामलों में अपील संबंधित क्षेत्राधिकार वाले  जिला न्यायालय में दायर की जाती है।

सरकारी रिपोर्ट में 'ग्राम न्यायालय' की परिभाषा

114वीं विधि आयोग रिपोर्ट:

भारत के विधि आयोग ने अपनी 114वीं रिपोर्ट[8] में, ग्राम न्यायालयों की स्थापना की सिफारिश  की थी, जिसका उद्देश्य आम आदमी को तेज़ी से, कम खर्च में और  प्रभावी रूप से न्याय देना था। विधि आयोग ने ग्राम न्यायालयों से जुड़े दो पहलुओं पर ख़ास जोर दिया था:: पहला, निचले स्तर पर बकाया मामलों के बोझ को को कम करना, और दूसरा, न्याय प्रक्रिया में  भागीदारी लाना। एक विकेन्द्रीकृत न्यायिक प्रणाली की आवश्यकता पर जोर देते हुए, आयोग ने ग्राम न्यायालयों की स्थापना के ज़रिए न्याय प्रणाली के जमीनी स्तर पर एक नई परत जोड़ने की सिफारिश की।

आधिकारिक डेटाबेस में ग्राम न्यायालय

ग्राम न्यायालय डैशबोर्ड

भारत सरकार के विधि और न्याय मंत्रालय के न्याय विभाग की वेबसाइट [9]पर  ग्राम न्यायालयों पर व्यापक जानकारी उपलब्ध कराई गई  है। इसपर विभिन्न राज्यों में अधिसूचित और कार्यशील ग्राम न्यायालयों की संख्या के साथ-साथ और भी कई अलग-अलग  तरह के आंकड़े प्रस्तुत करने वाले एक लगातार अपडेट किया जाने वाला  डैशबोर्ड दिया गया है। इसके अलावा, इन न्यायालयों  के प्रभावी कामकाज  के लिए केंद्र सरकार द्वारा मंजूर किए गए बजट  से जुड़े आंकड़े भी दिए गए हैं।

ग्राम न्यायालयों की आधिकारिक वेबसाइट का एक स्क्रीनशॉट जहाँ स्थापित किए गए कुल न्यायालयों और चालू ग्राम न्यायालयों की संख्या जैसे आंकड़े दिए गए हैं।  
ग्राम न्यायालयों की आधिकारिक वेबसाइट का एक स्क्रीनशॉट जहाँ निपटाए गए मामलों और बाकी मामलों की संख्या जैसे आंकड़े दिए गए हैं।

राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड:

राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (NJDG) की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध इसकी अंतिम रिपोर्ट के अनुसार, इसमें केरल के विभिन्न जिलों के विभिन्न ग्राम न्यायालयों से जुड़ी जानकारी दी गई है। इसके अलावा इसमें  बाकी  और निपटाए गए मामलों की कुल संख्या, पारित किए गए आदेशों, अपलोड किए गर और अभी तक अपलोड नहीं किए गए  आदेशों की संख्या जैसे आंकड़ें भी दिए गए हैं।

ग्राम न्यायालयों पर किए गए अध्ययन

ग्राम न्यायालय की स्थापना और उनके काम  का मूल्यांकन, जनवरी, 2018[10]

विधि और न्याय मंत्रालय द्वारा प्रायोजित, जनवरी 2018 में किया गया यह अध्ययन, कुछ चिंताजनक आंकड़े पर रोशनी डालता है। 2009-10 और 2017-18 के बीच, विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा केवल 320 ग्राम न्यायालय अधिसूचित किए गए, जिनमें से फिलहाल केवल 204 काम कर रहे थे । चौंका देने वाली बात यह है कि केवल 11 राज्यों ने ग्राम न्यायालयों को अधिसूचित करने की दिशा में कदम उठाए हैं, जो इस अधिनियम के उद्देश्य और मंशा  के विपरीत है। इस अधिनियम का उद्देश्य सभी नागरिकों के लिए 'दरवाजे पर न्याय' सुनिश्चित करना और सभी के लिए 'न्याय तक पहुंच' सुनिश्चित करना है।

भारतीय न्याय रिपोर्ट[11]

यह  एक वार्षिक रिपोर्ट है जो न्याय वितरण प्रणाली के चार पैमानों  पुलिस, जेल, न्यायपालिका और कानूनी सहायता - के आधार  पर भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को क्रमबद्ध  करती  है। इस रिपोर्ट में उन चुनौतियों और मुद्दों की पहचान की गई है जो  न्यायालयों के प्रभावी रूप से काम कर पाने में रुकावट पेश कर रहे हैं।   जैसे इनकी स्थापना अनिवार्य नहीं होना; , बुनियादी सेवाओं, कर्मचारियों और बजट  की कमी, तथा पुलिस और अन्य अधिकारियों की ओर से सहयोग का अभाव।

न्याय का संस्थानीकरण: ग्राम न्यायालय और उपभोक्ता न्यायालय

यह लेख[12] न्याय तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए न्यायपालिका द्वारा अपनाए गए दो प्रभावी उपायों पर प्रकाश डालता है: (क) ग्राम न्यायालय, जो ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 के तहत स्थापित किए गए हैं, और (ख) उपभोक्ता फोरम, जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत स्थापित किए गए हैं।

ये उपाय भारत में मामलों को औपचारिक न्यायालयों से बाहर ले जाने के लिए किए गए संयुक्त प्रयास के अच्छे उदाहरण हैं, जहां वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र (ADR) तेजी से महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है और विभिन्न रूपों में विकसित हो रहा है। यह लेख यह भी विश्लेषण करता है कि उपभोक्ता फोरम समय के साथ सुधारों के केंद्र में कैसे रहे हैं और उन्हें बेहतर बनाने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं।[13]

अंतर ररीय अनुभव

संयुक्त राज्य अमेरिका

संयुक्त राज्य अमेरिका में सामुदायिक न्यायालयों[14] को उन्हीं सिद्धांों कआधार पर स्थापिकिया ा है जिनपर भारत के ग्राम न्यालयों को किया गया है। इनके तहत, ्थान मुद्दों को हकरने उद्देश्य से समुदायों को न्याय्रणाली से जोड़ने के लिए स्थानीय न्यायालय स्थापित किए गए हैं।  सेंटर फॉर  कोर्ट इनोवेशन ने सामुदायिक न्यायालं से जुड़े  इन मार्गदर्शक सिद्धांत सुझाए  हैं[15]: समुदाय को मजबूत बनाना, समुदायों और न्यायालयों के बीच की खाई को कम करना, बिखरी हुई  आपराधिक न्याय प्रणाली को एकीकृत करना, अपराध की मूल समस्याओं को दूर कर पाने में अपराधियों की मदद  करना, न्यायालय की जानकारी में सुधार करना, और ऐसी अदालतें तैयार  जो इन उम्मीदों पर खरी उतारें । ये न्यायालय समुदायों की खास चिंताओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किए गए हैं।[16]

बांग्लादेश

ग्राम न्यायालय, बांग्लादेश में स्थानीय विवाद समाधान तंत्र का एक रूप हैं, जो ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2006[17] द्वारा स्थापित किए गए हैं। ये ग्रामीण लोगों, विशेष रूप से गरीब और कमज़ोर  लोगों को, छोटे-मोटे दीवानी और आपराधिक मामलों में आसान, तेज़ और कम खर्च में न्याय देने के मकसद से स्थापित किए गए   हैं। ग्राम न्यायालयों से 30 दिनों के अंदर मामलों का फैसला करने की उम्मीद की जाती है, और  उनके निर्णय कानून के तहत बाध्यकारी और लागू किए जा सकने वाले होते हैं । ग्राम न्यायालयों का बांग्लादेश की ग्रामीण न्याय प्रणाली पर सकारात्मक प्रभाव देखा गया है। उन्होंने औपचारिक न्यायालयों में बकाया मामलों की संख्या को, मुकदमेबाजी में होने वाले खर्च  और समय को कम किया है, लोगों में न्याय प्रणाली के प्रति संतुष्टि और विश्वास बढ़ाया है, और महिलाओं तथा हाशिए के समूहों को न्याय तक पहुंचने में सशक्त बनाया है। ग्राम न्यायालयों ने ग्रामीण समुदायों के बीच सामाजिक सद्भाव, शांति और विकास को बढ़ावा देने में भी योगदान दिया है।[18]

अन्य नाम:

गाँव अदालत

संदर्भ

  1. एक अधिनियम, जिसका उद्देश्य जमीनी स्तर पर ग्राम न्यायालयों की स्थापना करना है, ताकि नागरिकों को उनके द्वार पर न्याय तक पहुंच प्रदान की जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी नागरिक को सामाजिक, आर्थिक या अन्य बाधाओं के कारण न्याय प्राप्त करने के अवसरों से वंचित न किया जाए, तथा इससे संबंधित या इससे आनुषंगिक विषयों के लिए।
  2. https://cdnbbsr.s3waas.gov.in/s3ca0daec69b5adc880fb464895726dbdf/uploads/2022/08/2022080883.pdf
  3. Pib.gov.in. (2024). English Releases. [online] Available at: https://pib.gov.in/newsite/erelcontent.aspx?relid=52951 [Accessed 24 Jan. 2024].
  4. The Gram Nyayalayas Act, 2008, §3.
  5. The Gram Nyayalayas Act, 2008, §9.
  6. The Gram Nyayalayas Act, 2008, §11.
  7. The Gram Nyayalayas Act, 2008.
  8. https://cdnbbsr.s3waas.gov.in/s3ca0daec69b5adc880fb464895726dbdf/uploads/2022/08/2022080883.pdf
  9. Available at: https://dashboard.doj.gov.in/gn/index.php
  10. Evaluation Study of the Scheme of Establishing and Operationalizing Gram Nyayalayas, .Available at: http://nyay.upsdc.gov.in/MediaGallery/GramNyayalayaEvaluationReport.pdf
  11. India Justice Report: Ranking States on Police, Judiciary, Prisons and Legal Aid (2022). Available at: https://indiajusticereport.org/files/IJR%202022_Full_Report1.pdf
  12. Ashwini Obulesh, Institutionalising Justice: Gram Nyayalayas and Consumer Courts:https://www.dakshindia.org/state-of-the-indian-judiciary/34_chapter_19.html#_idTextAnchor485
  13. Robert Moog. 2008. ‘The Study of Law and India’s Society: The Galanter Factor’, Law and Contemporary Problems, 71(2): 129–137, p. 129. Also available online at http://scholarship.law.duke.edu/cgi/viewcontent.cgi?article=1470&context=lcp.
  14. Bureau of Justice Assistance. (2023). Community Courts Initiative | Overview. [online] Available at: https://bja.ojp.gov/program/community-courts/overview [Accessed 24 Jan. 2024].
  15. https://www.innovatingjustice.org/sites/default/files/cci-d6-legacy-files/pdf/com_court_prncpls.pdf
  16. id.
  17. https://www.dwatch-bd.org/village%20court%20act%202006.pdf
  18. Southsouth-galaxy.org. (2019). Village Court in Bangladesh: Bridging the Justice Gap | South-South Galaxy. [online] Available at: https://my.southsouth-galaxy.org/en/solutions/detail/village-court-in-bangladesh-bridging-the-justice-gap [Accessed 24 Jan. 2024].