Lok Adalat (Hindi)
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लोक अदालत क्या होती है?
लोक अदालत विवादों के वैकल्पिक समाधान का एक तरीका है जिसे राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (NALSA) और अन्य कानूनी सेवा संस्थाओं द्वारा स्थापित किया गया है। लोक अदालत का अर्थ, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, 'जन न्यायालय' ("लोक" का अर्थ "लोग" और "अदालत" का अर्थ है न्यायालय)।
लोक अदालतों में ऐसे विवादों/मामलों (सिर्फ समझौता-योग्य अपराधों से जुड़े मामले ही) को आपसी समझ से निपटाए जाते हैं जो या तो न्यायालय में लंबित हो या अभी न्यायालयों में दाखिल नहीं किए गए हैं।[1] लोक अदालत के फैसले अंतिम माने जाते हैं। लोक अदालतों में परामर्शदाताओं और मध्यस्थों की मदद से आपसी सहमति और स्वेच्छा से मामले सुलझाने के सिद्धांत के आधार पर मामले निपटाए जाते हैं। । इस प्रक्रिया की बुनियाद इस विचार पर टिकी है कि विवाद से जुड़े सभी पक्षों को यह महसूस कराया जाए कि उनकी भलाई और हित मामले को जल्दी, आपसी समझ और सहमति से शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने में है।[2]
कोविड महामारी के दौरान, कानूनी सेवा प्राधिकरणों ने ई-लोक अदालत की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने प्रौद्योगिकी का उपयोग करके एक ऑनलाइन फॉर्म अपनाया। अब प्रभावित पक्ष मामले को ऑनलाइन भी सुलझा सकते हैं, जिससे प्रक्रिया और भी किफायती बन गई है।[3]
आधिकारिक परिभाषा
लोक अदालतों को कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के अध्याय VI के तहत कानूनी दर्जा दिया गया है। लोक अदालत द्वारा सुनाए गए फैसलों को कानून सेवा प्राधिकरण (LSA) अधिनियम, 1987 के तहत एक दीवानी/सिविल न्यायालय के आदेश का दर्जा दिया गया है। निर्णय अंतिम होते हैं और न्यायालय में इनके खिलाफ अपील नहीं की जा सकती। विभिन्न कानूनी सेवा प्राधिकरण, जब वे ज़रुरत समझें, तब लोक अदालत आयोजित कर सकते हैं जो लोगों को न्यायालयों के बाहर विवाद निपटाने, न्यायालय में मामलों के बोझ को कम करने और मामलों को तेजी से हल करने में मदद करते हैं। ये एक स्थायी अदालत नहीं हैं।, लोक अदालतों को कानून सेवा संस्थानों द्वारा LSA अधिनियम, 1987 की धारा 19 के तहत आयोजित किया जाता है।[4]
इन कानूनी सेवा प्राधिकरणों द्वारा आयोजित की गई हर लोक अदालत में सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी और उस क्षेत्र के कुछ अन्य व्यक्ति होने चाहिए जिनकी नियुक्ति कानूनी सेवा संस्थान अपने नियमों के अनुसार कर सकते हैं। 'अन्य व्यक्तियों' के नियुक्ति के लिए ज़रूरी अनुभव और योग्यता से जुड़े नियम भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ सलाह-मशवरा करके केंद्र सरकार द्वारा या राज्य के मुख्य न्यायाधीश के साथ सलाह-मशवरा करके राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किए जाने चाहिए।[5]
लोक अदालत के ज़रिए अपना मामला निपटाने के लिए दोनों पक्ष सहमत होना चाहिए। या, कोई भी एक एक पक्ष न्यायालय या किसी कानून सेवा प्राधिकरण को अर्जी भेज सकता है, और यदि न्यायालय को पहली नज़र में यह लगे कि समझौते की संभावनाएं हैं, तो वह मामले को लोक अदालत भेज सकता है।[6]
आमतौर पर, लोक अदालत इतनी काबिलियत रखते हैं कि वे समझौता-योग्य दीवानी/सिविल, राजस्व और आपराधिक मामलों को, मोटर दुर्घटना के मामलों को, विभाजन दावों को, वैवाहिक और पारिवारिक विवादों को, बंधुआ मजदूर विवादों को, भूमि अधिग्रहण विवादों को, बैंकों के बकाया ऋण के मामलों को, बकाया सेवानिवृत्ति लाभ के मामलों को निपटा सकें।[7]
अगर लोक अदालत में कोई समझौता नहीं हो पता है और मामले का निपटारा संभव नहीं होता ही तो लोक अदालत पक्षों को न्यायालय के सामने जाने की सलाह देती है।[8]
विभिन्न प्रकार की लोक अदालत
लोक अदालतों को राज्य स्तर पर, उच्च न्यायालय या जिला न्यायालय स्तर पर, और तहसील स्तर पर आयोजित किया जा सकता है।
राष्ट्रीय लोक अदालत
इस प्रकार की लोक अदालत नियमित अंतराल पर आयोजित की जाती है। पहले से तय की गई एक तारीख पर सभी न्यायालय (सर्वोच्च न्यायालय से लेकर तहसील स्तर तक) राष्ट्रीय कानून सेवा प्राधिकरण के मार्गदर्शन में लोक अदालतों का आयोजन करते हैं। [9]फरवरी 2015 से, हर महीने एक तय किए गए विषय पर राष्ट्रीय लोक अदालतें आयोजित की जा रही हैं।
स्थायी लोक अदालत
स्थायी लोक अदालतों का गठन सार्वजनिक सेवाओं सेजुड़े विवादों में मुक़दमा दायर करने से पहले अनिवार्य बनाई गई पूर्व प्रक्रिया के लिए किया गया है (बशर्ते की ये मामला समझौता-योग्य अपराध से संबंधित हो)।[10] इन्हें सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 22-बी के तहत आयोजित किया जाता है। स्थायी लोक अदालतों की एक अनूठी विशेषता यह है कि इनमें आपसी समझौते और अदालत के मध्यस्थता, दोनों ही प्रक्रियाओं का इस्तेमाल किया जाता है। [11]अगर पक्ष सुलह प्रक्रिया के बाद भी विवाद हल नहीं कर पाते हैं, तो वहाँ स्थायी लोक अदालत को मध्यस्थता करने का अधिकार है,[12] जबकि आम लोक अदालतों को यह अधिकार नहीं दिया गया है। [13] स्थायी लोक अदालतों को एक करोड़ रुपये तक के मूल्य के सार्वजनिक सेवाओं से जुड़े मामलों का फैसला करने का अधिकार भी दिया गया है।
स्थायी लोक अदालत द्वारा दिया गया हर फैसला अंतिम होता है और स्थानीय अधिकार क्षेत्र वाले सिविल न्यायालय इसे अपने खुद के आदेश की तरह ही लागू कर सकते हैं। लेकिन, इन फैसलों को उच्च न्यायालय में रिट याचिका के माध्यम से चुनौती दी जा सकती है।[14]
मोबाइल लोक अदालत
मोबाइल लोक अदालतों का आयोजन नालसा (NALSA) द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में अन्य कानून सेवा संस्थानों के साथ मिलकर किया जाता है। ये अदालतें विवादों के समाधान की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाती है।[15]
आधिकारिक डेटाबेस में लोक अदालत
लोक अदालतों से जुड़ी जानकारी मुख्य रूप से राष्ट्रीय कानून सेवा प्राधिकरण की आधिकारिक वेबसाइट पर और राज्य-स्तरीय ई-अभियोजन वेबसाइटों पर उपलब्ध हैं।
राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण - आधिकारिक वेबसाइट
राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण ("नालसा")[16] की आधिकारिक वेबसाइट पर लोक अदालत से जुड़े सभी नियम और विनियम उपलब्ध हैं। इसके अलावा, इस पर वार्षिक रिपोर्ट भी उपलब्ध हैं जिनमें कई तरह के आंकड़ें दिए गए हैं - जैसे हर प्रकार की लोक अदालत में निपटाए गए मामलों की संख्या और लोक अदालतों में समझौते के ज़रिए निपटाए गए मामलों की संख्या । इस साइट पर राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों की वेबसाइट के लिंक और देश में आयोजित की गई लोक अदालतों की संख्या और विभिन्न प्रकार की लोक अदालतों से जुड़ी आम सामान्य जानकारी दी गई है। उदाहरण के लिए, स्थायी लोक अदालत की रिपोर्ट जैसी जानकारी भी यहाँ देखी जा सकती है।
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कानूनी सहायता मामला प्रबंधन प्रणाली की वेबसाइट, जिसकी देखरेख राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण द्वारा की जाती है, उस पर मामला दर्ज करने की प्रक्रिया के बारे में गाइड और वीडियो उपलब्ध हैं। अन्य सेवाओं के लिए राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण की आधिकारिक वेबसाइट पर रीडायरेक्ट किया जाता है। इसके अलावा, वेबसाइट पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों का एक खंड है जहाँ सेवाओं से जुड़े बुनियादी सवलों के जवाब दिए गए हैं।[17]
ई-कोर्ट्स सेवाएँ की वेबसाइट
ई-कोर्ट्स वेबसाइट पर लोक अदालत मामलों की कौनसी और कितनी जानकारी उपलब्ध है, यह राज्य या क्षेत्राधिकार पर निर्भर है। कुछ राज्यों में कहीं ज़्यादा व्यापक ऑनलाइन प्रणाली उपलब्ध हैं। लोक अदालत मामलों से जुड़ी सुविधाओं, खसतौर पर जानकारी खोजने की सुविधा का इस्तेमाल करने के लिए संबंधित राज्य या क्षेत्राधिकार की आधिकारिक ई-कोर्ट्स वेबसाइट देखी जा सकती है।
राज्य कानूनी प्राधिकरण सेवाओं की वेबसाइटें
भारत में राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों (SLSAs) की वेबसाइटें कानूनी सहायता और न्याय तक पहुंच से संबंधित जानकारी और सेवाएं प्रदान करती हैं, जिसमें लोक अदालतें भी शामिल हैं।
कर्नाटक राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण की वेबसाइट पर मामलों के निपटान से जुड़े आंकड़े 3 फॉर्मेट में प्रकाशित किए जाते हैं: 1) लंबित मामलों का निपटान; 2) मुकद से पहले आने वाले मामलों का निपटान; और 3) राष्ट्रीय लोक अदालत के तहत जिलावार समझौते के आंकड़े।
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गुजरात राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण, राष्ट्रीय लोक अदालतों के दौरान निपटाए गए मुकदमे के पहले के मामलों और लंबित मामलों से जुड़े आंकड़े प्रकाशित करता है।
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भारत न्याय रिपोर्ट
पुलिस, न्यायपालिका, जेल और कानूनी सहायता[18] के आधार पर राज्यों की रैंकिंग: यह रिपोर्ट लोक अदालतों में आने वाले मामलों की संख्या और अलग-अलग वर्षों में इनके द्वारा निपटाए गए मामलों की संख्या का संक्षिप्त ब्यौरा पेश करती है। यह एक आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट है जो राष्ट्रीय लोक अदालतों और राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों द्वारा निपटाए गए मुकदमे के पहले वाले मामलों की राज्य-वार संख्या दर्शाती है।
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लोक अदालत से जुड़े अध्ययन[19]
लोक अदालतों के माध्यम से गोलमेज न्याय - भारत में एक जीवंत वैकल्पिक विवाद समाधान प्रणाली[20]:
यह लेख वैकल्पिक विवाद समाधान की सोच और दर्शन पर, विशेष रूप से लोक अदालत पर चर्चा करता है, और इस नतीजे पर पहुंचता है कि बहुलतावादी लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देने, कानून के शासन को बनाए रखने और न्याय तक समान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए लोक अदालतों बढ़ावा दिया जाना चाहिए और उन्हें मजबूत किया जाना चाहिए।
ओडीआर: भारत में विवाद समाधान का भविष्य (विधि):[21]
यह शोध पत्र लोक अदालतों की व्यवहार्यता और उनमें छिपी संभावना पर चर्चा करता है, विशेष रूप से वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र और कोविड-19 महामारी की वजह से पैदा हुई चुनौतियों के संदर्भ में। यह रिपोर्ट एक साल में लोक अदालतों द्वारा सुलझाए गए विवादों की संख्या पर महत्वपूर्ण डेटा उपलब्ध कराती है। इसमें लोक अदालतों के कामकाज को और प्रभावी बनाने के लिए और उनके सामने खड़ी चुनौतियों का सामने करने के लिए सुझाव भी दिए गए हैं। कुल मिलाकर, यह रिपोर्ट, विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण समय के दौरान, लोक अदालतों की भूमिका और प्रभावी रूप से विवादों का समाधान कर पाने की उनकी क्षमता से जुड़े महत्वपूर्ण सुझाव देती है।
संघर्ष और समझौता, वाराणसी जिले में लोक अदालतों की राजनीति:[22]
इस लेख में एक तीसरा नजरिया अपनाया गया है जो भारत में लोक अदालत के ढांचे और कामकाज से जुड़े व्यक्तियों के राजनीतिक व्यवहार पर ध्यान केंद्रित करता है।
भारत में लोक अदालतों का कामकाज - एक समीक्षात्मक विश्लेषण:[23]
इस लेख में लोक अदालतों की दीर्घकालिक विफलता पर चर्चा करते हुए, इसके लिए प्रक्रियाओं से जुड़ी कमियों और अविधता के अलावा न्याय करने के बजाय मामलों को तेज़ी से निपटाने पर ज़ोर देने की प्रवृत्ति को दोषी ठहराया गया है। यह लेख इस बात पर जोर देता है कि न्याय तक पहुंच सुनिश्चित करने का उद्देश्य अब अदालतों तक पहुंच सुनिश्चित करने में बदल चुका है, जिसमें न्याय करने के बारे में अब कोई परवाह नहीं की जाती है।
भारत के पूर्वी क्षेत्र में लोक अदालतों के कार्य का विश्लेषण: एक तुलनात्मक रिपोर्ट:[24]
यह रिपोर्ट भारत के पूर्वी क्षेत्र में लोक अदालतों का एक गहरा विश्लेषण प्रस्तुत करती है। इसमें ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल और बिहार राज्यों पर विशेष ध्यान दिया गया है। इस रिपोर्ट में कर्मचारी, बुनियादी सेवाएं, नीतियां, प्रशिक्षण और मामलों के निपटान जैसे प्रमुख पहलुओं की जांच की गई है। इस अध्ययन के चार प्रमुख उद्देश्य हैं को : पूर्वी क्षेत्र में लोक अदालतों की वर्तमान स्थिति का आकलन, सांख्यिकीय मापदंडों के पैमाने पर अदालतों का मूल्यांकन, उनके प्रभावी कामकाज में आने वाली रुकावटों की पहचान, और उनकी कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए रणनीतिक सुधारों के सुझाव।
अंतरराष्ट्रीय अनुभव
कई देशों ने भारत की लोक अदालतों की ही तरह प्रणालियां स्थापित की हैं। लोक अदालत एक वैकल्पिक विवाद समाधान व्यवस्था है। ज़्यादातर देशों में इसी तरह के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए इसी तरह की संस्थाएं बनाई गौ हैं। लोक अदालत जैसी व्यवस्था वाले कुछ देशों के बारे में नीचे बताया गया है:
बांग्लादेश
बांग्लादेश में "सालिश" नामक एक प्रणाली है, जिसके ज़रिए सुलह या मध्यस्थता के माध्यम से विवादों को सुलझाने का विकल्प दिया गया है।[25]
मलेशिया
मलेशिया में "पुसत मेडिएसी मलेशिया" (मलेशियाई मध्यस्थता केंद्र) नामक एक प्रणाली है।[26] यह एक वैकल्पिक विवाद समाधान उपाय के रूप में कार्य करता है, जो पक्षों को आपसी समझ के ज़रिए अपने विवादों को सुलझाने का मौका देता है।
फिलीपींस
फिलीपींस में "कतरुंगंग पम्बरंगय" (बरंगय न्याय प्रणाली) नाम की एक प्रणाली है, [27]जो जमीनी स्तर पर काम करती है। इसका उद्देश्य स्थानीय समुदाय में मध्यस्थता और सुलह के माध्यम से विवादों को सुलझाना है।
इंडोनेशिया
यहाँ "बदन आर्बित्रासे नेशनल इंडोनेशिया" (इंडोनेशियाई राष्ट्रीय मध्यस्थता बोर्ड) [28]नामक एक प्रणाली है जो औपचारिक न्यायालयों के बाहर वाणिज्यिक विवादों के समाधान के लिए मध्यस्थता सेवाएं प्रदान करती है।
श्रीलंका
श्रीलंका में "ग्रामरक्ष निलधारी" नाम की एक प्रणाली है, जो गाँव स्तर पर कार्य करती है और स्थानीय समुदाय के बीच छोटे नागरिक विवादों को सुलझाने का एक उपाय है।[29]
संदर्भ
- ↑ राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण की आधिकारिक वेबसाइट:https://nalsa.gov.in/lok-adalat
- ↑ Justice Jitendra N. Bhatt, A round table Justice through Lok-Adalat (Peoples' Court) - A vibrant - ADR - in India, (2002) 1 SCC (Jour) 11
- ↑ प्रेस सूचना ब्यूरो आधिकारिक वेबसाइट:https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1882229
- ↑ https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1882229
- ↑ Section 19, The Legal Services Authorities Act, 1987
- ↑ यह शर्त होगी कि किसी भी मामले को लोक अदालत में भेजने से पहले अन्य पक्ष को सुनवाई का उचित अवसर दिया जाएगा।
- ↑ https://ccsuniversity.ac.in/bridge-library/pdf/BALLB-VIII-SEM-ARBITRATION-CONCILIATIONN-&-ADR-Lecture-on-Lok-Adalat.pdf
- ↑ Section 21, The Legal Services Authorities Act, 1987
- ↑ https://economictimes.indiatimes.com/news/india/more-than-97-64-lakh-cases-settled-in-first-national-lok-adalat-of-2023-nalsa/articleshow/97829554.cms?from=mdr
- ↑ हवाई, सड़क या जल मार्ग से यात्रियों या माल के परिवहन सेवा; या डाक, तार या टेलीफोन सेवाएं; या किसी प्रतिष्ठान द्वारा जनता को बिजली, प्रकाश या पानी की आपूर्ति; या सार्वजनिक स्वच्छता या सफाई व्यवस्था; या अस्पताल या औषधालय में सेवा; या बीमा सेवा आदि।
- ↑ https://nalsa.gov.in/lok-adalat/permanent-lok-adalat#:~:text=The%20other%20type%20of%20Lok,Legal%20Services%20Authorities%20Act%2C%201987
- ↑ https://www.newindianexpress.com/nation/2022/may/19/permanent-lok-adalats-have-adjudicatory-functions-empowered-to-decide-case-on-merits-sc-2455585.html
- ↑ https://www.livelaw.in/news-updates/rajasthan-high-court-adjudicatory-power-of-lok-adalat-compromise-settlement-between-parties-legal-services-authority-act-223753
- ↑ G.Gnana Suvarna Raju, Chairman, Permanent Lok Adalat for Public Utility Services, Srikakulam, ‘Access to justice through Permanent Lok Adalat for Public Utility Services, An OverView’, available at: https://districts.ecourts.gov.in/sites/default/files/PLAPUS-overview.pdf
- ↑ https://www.mpslsa.gov.in/lok-adalat.php
- ↑ https://nalsa.gov.in/home
- ↑ https://nalsa.gov.in/faqs
- ↑ https://indiajusticereport.org/files/IJR%202022_Full_Report1.pdf
- ↑ यह ध्यान देने योग्य है कि यह एक विस्तृत सूची प्रदान नहीं करता है।
- ↑ Jitendra N. Bhatt, Judge, High Court of Gujarat, and Executive Chairman, Gujarat State Legal Services Authority, Ahmedabad, A Round Table Justice Through Lok-Adalat (People’s Court) - A Vibrant ADR in India, (2002) 1 SCC J-10
- ↑ VIDHI Centre for Legal Policy, ODR: The Future of Dispute Resolution in India: https://vidhilegalpolicy.in/wp-content/uploads/2020/07/200727_The-future-of-dispute-resolution-in-India_Final-Version.pdf
- ↑ Moog, Robert S. “Conflict and Compromise: The Politics of Lok Adalats in Varanasi District.” Law & Society Review, vol. 25, no. 3, 1991, pp. 545–69. JSTOR, https://doi.org/10.2307/3053726 .
- ↑ https://nliulawreview.nliu.ac.in/wp-content/uploads/2021/12/Volume-II-Issue-I-86-107.pdf
- ↑ https://cdnbbsr.s3waas.gov.in/s35d6646aad9bcc0be55b2c82f69750387/uploads/2021/11/2021112340.pdf
- ↑ Kamal Siddiqui, 'In Quest of Justice at the Grass Roots', Journal of Asiatic Society of Bangladesh, Vol. 43, No.1, 1998; Fazlul Huq, Towards' a Local Justice System for the Poor, Dhaka, 1998.
- ↑ https://www.malaysianmediationcentre.org/
- ↑ https://www.gsdrc.org/docs/open/ssaj15.pdf
- ↑ https://uk.practicallaw.thomsonreuters.com/4-520-8413?transitionType=Default&contextData=(sc.Default)&firstPage=true
- ↑ https://www.sundaytimes.lk/130714/news/grama-niladhari-grassroots-go-between-state-and-common-man-52904.html