Witness (Hindi)
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गवाह कौन होता है?
एक व्यक्ति जिसने किसी अपराध का प्रत्यक्ष अनुभव किया हो और जो न्यायिक अधिकरण[1] के समक्ष साक्ष्य दे या बयान दे, उसे गवाह कहा जाता है। जेरेमी बेंथम ने अपनी पुस्तक "ए ट्रीटाइज ऑन जुडिशियल एविडेंस" में सचित्र रूप से कहा था: "गवाह न्याय की आंखें और कान होते हैं"।[2]
आधिकारिक परिभाषा
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 या किसी अन्य कानून में 'गवाह' शब्द की परिभाषा नहीं दी गई है। पर , साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 3 (या भारतीय साक्ष्य संहिता, 2023 की धारा 2, जिसे अब से 'बी.एस.एस.' कहा जाएगा) से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि 'गवाह' वह व्यक्ति हैजिसके मुह-बोले वर्णन जाँच में जुड़े तथ्यों के लिए सबूत के तौर पर काम करते हैं।[3]
साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धाराएं 118, 119 और 120 (या बी.एस.एस. की धाराएं 124, 125 और 126) भी स्पष्ट करती हैं कि गवाह वह व्यक्ति है जो न्यायालय के समक्ष गवाही देता है।[4]
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 161 (या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 180, जिसे आगे 'बीएनएसएस' कहा जाएगा) "गवाह" शब्द को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करती है जो "मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित प्रतीत होता है"।[5] शिव राज बनाम राज्य मामले[4] में यह माना गया था कि "साक्ष्य अधिनियम के प्रावधान यह स्पष्ट करते हैं कि कोई भी व्यक्ति न्यायालय के समक्ष कार्यवाही के संबंध में ही गवाह का दर्जा प्राप्त कर सकता है। इसका अर्थ है कि जब तक किसी अपराध की जांच चल रही है, तब तक किसी को भी 'गवाह' नहीं कहा जा सकता और कोई भी कथन साक्ष्य नहीं कहा जा सकता।"
जाँच के समय भी गवाहों का किरदार होता है - उन्हें आरोपी की पहचान करने के लिए “टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड” (शिनाख्त परेड) में बुलाया जा सकता है।[6] इसके अलावा, कोई भी न्यायालय, दंड प्रक्रिया संहिता के तहत जांच, सुनवाई या अन्य कार्यवाही के किसी भी पड़ाव में, किसी भी व्यक्ति को गवाह के रूप में बुला सकता है, या उपस्थित किसी व्यक्ति की जांच कर सकता है, भले ही उसे गवाह के रूप में नहीं बुलाया गया हो, या ऐसे व्यक्ति को वापस बुला सकता है और वापस जांच कर सकता है यदि उसका साक्ष्य मामले के खरे निर्णय के लिए आवश्यक लगता है।[7]
किसी व्यक्ति को गवाह के रूप में बुलाए जाने से पहले कुछ आवश्यकताओं को पूरा करना होता है और दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 283 (बी.एन.एस.एस. की धारा 380) के अनुसार, प्रत्येक उच्च न्यायालय को अपने समक्ष के मामलों में साक्ष्य और गवाहों की जांच को दर्ज करने के तरीके के नियम बनाने की शक्ति दी गई है।
सिविल प्रक्रिया संहिता
सिविल कार्यवाहियों में, गवाहों को विवाद में शामिल किसी भी पक्ष द्वारा या यहां तक कि न्यायालय द्वारा भी बुलाया जा सकता है। गवाह के बयान का उद्देश्य पक्षों द्वारा किए गए दावों को सिद्ध करना और न्यायालय को खरे निर्णय पर पहुंचने में मदद करना है।
भारत में सिविल कार्यवाहियों में गवाहों को बुलाने और जांच करने की प्रक्रिया सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) द्वारा नियंत्रित होती है। सी.पी.सी. की धारा 75 कहती है कि कोई भी न्यायालय किसी भी समय, पर्याप्त कारण के लिए, किसी भी व्यक्ति को गवाह के रूप में बुला सकता है, या न्यायालय में उपस्थित किसी भी व्यक्ति की जांच कर सकता है, भले ही उसे गवाह के रूप में नहीं बुलाया गया हो।[8]
इसके अलावा, सी.पी.सी. का आदेश XVI गवाहों की जांच के संबंध में संपूर्ण प्रावधानबताता है। यह गवाहों को बुलाने के तरीके, उनकी मुख्य परीक्षा (अर्थात, गवाह को बुलाने वाले पक्ष द्वारा पहली परीक्षा), विरुद्ध पक्ष द्वारा प्रतिपरीक्षा, पुनः परीक्षा, और सत्य का खुलासा करने के लिए गवाहों से प्रश्न पूछने की न्यायालय के अधिकार को बताता है।
गवाह संरक्षण योजना, 2018
2018 की गवाह संरक्षण योजना 'गवाह' को ऐसे किसी भी व्यक्ति को बुलाती है जिसके पास सक्षम प्राधिकारी के अनुसार आपराधिक कार्यवाही के लिए महत्वपूर्ण जानकारी या दस्तावेज है। यह व्यक्ति या तो बयान दे चुका है, साक्ष्य देने के लिए सहमत हुआ है, या चल रही कार्यवाही के संबंध में गवाही देने के लिए मजबूर है।[9]
गवाह की योग्यताएं
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 118 गवाह बनने के लिए व्यक्ति में आवश्यक योग्यता की भी व्याख्या करती है। यह बीएसएस की धारा 124 से मिलती है, जो 'पागल' शब्द को 'अस्वस्थ मन वाले व्यक्ति ' से बदलने के अलावा पूरी तरह से इस धारा को बरकरार रखती है।
इस धारा में व्यक्ति की योग्यता परखने के लिए दो तरह के परीक्षण है - (i) समझ का परीक्षण और (ii) संवाद का परीक्षण। समझ का परीक्षण यह परखता है कि क्या व्यक्ति गवाह के रूप में उससे पूछे गए प्रश्नों को समझ पाता है और संवाद का परीक्षण यह परखता है कि क्या व्यक्ति उन प्रश्नों के उत्तर दे सकता है जिन्हें समझा जा सके। कोई भी व्यक्ति, चाहे वह युवा हो या वृद्ध, यह दोनों परीक्षणों को पास करने पर सक्षम गवाह माना जाता है। धारा 119 (बीएसएस की धारा 125) कहती है कि "बोलने में असमर्थ गवाह" द्वारा दिए गए किसी भी लिखित साक्ष्य या संकेतों पर "समझ में आने की क्षमता" का परीक्षण लागू किया जा सकता है।[5]
पर यह माना जाता है कि सभी गवाह सक्षम हैं, और इसलिए यह साबित करने का भार कि गवाह असक्षम है, उस व्यक्ति पर होता है जो ऐसा आरोप लगा रहा है।
गवाह द्वारा दिए गए बयान न्यायालय में दिए जाने चाहिए, हालांकि गवाह की उपस्थिति की कानूनी आवश्यकता का अर्थ वास्तविक शारीरिक उपस्थिति नहीं है और गवाह की जांच वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से भी की जा सकती है।
योग्यता परीक्षण के अलावा, गवाह को शपथ लेने की अपनी योग्यता भी साबित करनी होती है।[10] यह सुनिश्चित करने के लिए कि गवाह केवल सच बोले, कानून दो उपाय देता है: (क) सच बोलने की शपथ लेना या गंभीर वचन देना , और (ख) जब कोई गवाह जानबूझकर झूठ बोलता है तो शपथ तोड़ने के लिए दंड लगाना।
गवाहों की जांच
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 138 (या बी.एस.एस. की धारा 143) जांच के क्रम बताती है। गवाह की पहले मुख्य परीक्षा की जाती है, फिर प्रतिपरीक्षा और फिर पुनः परीक्षा (यदि न्यायालय या किसी भी पक्ष द्वारा आवश्यक हो)।[11] भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 137 (या बी.एस.एस. की धारा 142) के तहत मुख्य परीक्षा का अर्थ है गवाह को बुलाने वाले पक्ष द्वारा गवाह की जांच। फिर, विपरीत पक्ष के पास गवाह की प्रतिपरीक्षा करने का अवसर होता है और यदि गवाह को बुलाने वाला पक्ष प्रतिपरीक्षा के बाद फिर से गवाह की जांच करना चाहता है, तो वह ऐसा कर सकता है। आम तौर पर, प्रतिपरीक्षा के दौरान दिए गए उत्तरों को समझाने के लिए पुनः परीक्षा की जाती है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 311 (या बी.एन.एस.एस. की धारा ३) किसी ऐसे गवाह को वापस बुलाने के बारे में भी बात करती है जिसकी पहले ही परीक्षा की जा चुकी है, यदि न्यायालय को लगता है कि गवाह के पास मामले के लिए महत्वपूर्ण साक्ष्य है। धारा ३ दंड प्रक्रिया संहिता/३ बी.एन.एस.एस. के तहत गवाह को वापस बुलाने के लिए आवेदन न्यायालय के विवेक पर सुनवाई के किसी भी पड़ाव में, यहां तक कि साक्ष्य बंद होने के बाद भी अनुमति दी जा सकती है।[12]
इसके अतिरिक्त, सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश XVIII नियम १ यह भी कहता है कि न्यायालय के पास किसी भी स्थिति या संदेह को स्पष्ट करने के लिए गवाहों को वापस बुलाने का अधिकार है और न्यायालय स्वतः संज्ञान से या सुनवाई के किसी भी पड़ाव में किसी भी पक्षकार की मांग पर गवाह को वापस बुला सकता है। न्यायालय, ऐसे गवाहों को बुलाते समय, अपने अधिकार का विस्तार करके गवाह द्वारा पहले से दिए गए साक्ष्य में किसी कमी को पूरा नहीं कर सकता।[13]
गवाहों की परीक्षा और प्रतिपरीक्षा की प्रक्रिया
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 231(२) (या बी.एन.एस.एस. की धारा 254) ऐसा उपलब्द्ध करती है कि सत्र न्यायालय में सुनवाई के दौरान, अभियोजन पक्ष निर्धारित दिनांक पर अपना साक्ष्य प्रस्तुत कर सकता है, और बचाव पक्ष या तो उसी दिन प्रतिपरीक्षा कर सकता है या प्रतिपरीक्षा का दिनांक को स्थगित किया जा सकता है।
नए आपराधिक कानूनों ने गवाह के साक्ष्य के वीडियो या ऑडियो रिकॉर्डिंग की अनुमति देने वाला एक प्रावधान जोड़ा है। धारा 242(2) (या बी.एन.एस.एस. की धारा 265) पुलिस रिपोर्ट पर संस्थापित मामलों में आरोपी द्वारा प्रतिपरीक्षा की अनुमति देती है और मजिस्ट्रेट द्वारा वारंट प्रक्रिया के तहत समन जारी करके सुनवाई के मामले में मजिस्ट्रेट द्वारा प्रतिपरीक्षा की जाती है। धारा 246(4) मजिस्ट्रेटों द्वारा वारंट मामलों की सुनवाई में अभियोजन गवाहों की प्रतिपरीक्षा का प्रावधान करती है जो पुलिस रिपोर्ट के अलावा अन्य तरीके से संस्थापित किए गए हैं।
धारा 275 की उपधारा १ (या बी.एन.एस.एस. की धारा 310) अपराध के आरोपी व्यक्ति के वकील की उपस्थिति में ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से भी साक्ष्य दर्ज करने की की अनुमति देती है। यह सर्वोच्च न्यायालय और कई उच्च न्यायालयों द्वारा प्रदान किए गए निर्देशों और न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्णयों से भी सुनिश्चित किया जा सकता है।[14]
गवाहों के प्रकार
विश्वसनीयता/विश्वास के आधार पर
गवाहों का वर्गीकरण महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यह उनकी गवाही की विश्वसनीयता और विश्वास को परखने में मदद करता है। वर्गीकरण को समझना उनके बयानों की ताकत और कमजोरियों पर प्रकाश दाल सकता है । निम्नलिखित गवाहों के अलग-अलग वर्ग हैं:
- प्रत्यक्षदर्शी (चश्मदीद गवाह): वह व्यक्ति जिसने किसी घटना का प्रत्यक्ष अनुभव किया है, प्रत्यक्षदर्शी कहलाता है। यह शक्तिशाली साक्ष्य है, क्योंकि यह किसी घटना के प्रत्यक्ष निरीक्षण पर आधारित होता है। हालांकि, एक प्रत्यक्षदर्शी की विश्वसनीयता उनकी समझ, याद, और उनके निजी झुकावों से से प्रभावित हो सकती है।
- विशेषज्ञ गवाह: विशेषज्ञ गवाहों की चर्चा भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा ४ (या बी.एस.एस. की धारा ३) के तहत की गई है और वे अपनी पेशेवर विशेषज्ञता के आधार पर विशेष ज्ञान और राय प्रदान करते हैं। उनकी गवाही तकनीकी, वैज्ञानिक या जटिल मामलों से जुड़े मामलों में महत्वपूर्ण हो सकती है। बी.एस.एस. इसे खोलता है, 'या किसी अन्य क्षेत्र' शब्द जोड़कर।
- हितबद्ध गवाह: हितबद्ध गवाह जिसका आरोपी को दोषी ठहराए जाने में हित है और उनकी गवाही की बहुत सावधानीपूर्वक जांच की जानी चाहिए और सभी कमियों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
- संबंधित गवाह: संबंधित गवाह, जैसा कि नाम से पता चलता है, एक ऐसा गवाह होता है जो किसी न किसी न किसी तरह से किसी भी पक्ष से संबंधित होता है।
- बाल गवाह: एक बच्चा जो योग्यता परीक्षण पास कर सकता है, उसे गवाह के रूप में बुलाया जा सकता है और 'बाल गवाह' शब्द को भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा १ (या बी.एस.एस. की धारा १२) के तहत परिभाषित किया गया है।[15] एक बच्चे को अदालत में गवाही देने के लिए योग्य माना जाता है यदि वह उससे पूछे गए प्रश्न को समझने और उसका समझदारी से उत्तर देने में सक्षम है। कानून द्वारा कोई निश्चित आयु तय नहीं की गई है जिसके भीतर एक बच्चे को गवाही देने से छूट दी जाती है जो वे स्पष्ट रूप से समझते हैं। यह न्यायालय तय करता है है कि वह बच्चे के बयान को मामले में साक्ष्य के रूप में स्वीकार करे या न करे।[16] न्यायाधीश बच्चे के व्यवहार, उसकी बुद्धिमत्ता या इसकी कमी को देखकर इस मामले के संबंध में निर्णय ले सकता है और इसे तय करने करने के लिए किसी भी प्रकार की परीक्षा का सहारा ले सकता है।[17] अक्षय शर्मा विरुद्ध आसाम राज्य[18] के मामले में गुआहाटी उच्च न्यायलय ने विचरण न्यायलय और निर्धारित मजिस्ट्रेट के लिए निर्देशन दिए थे जिससे वो एक बाल गवाह के बयान को दर्ज कर सकें।
- बहरा और गूंगा गवाह: भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 119 (या बीएसएस की धारा 125) बहरे और गूंगे गवाहों के बारे में बात करती है और कैसे उनके द्वारा दिया गया साक्ष्य सच्चा साक्ष्य है। इसे मौखिक साक्ष्य माना जाता है। वे बाल गवाह से अलग होते हैं और उन्हें चल रहे कानूनी कार्य की प्रकृति को समझना ज़रूरी होता है जबकि बच्चे को इसे समझने की आवश्यकता नहीं होती। वे संकेतों के माध्यम से साक्ष्य दे सकते हैं।[19]
- पक्षद्रोही गवाह: एक पक्षद्रोही गवाह को एक हानिकर गवाह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो उस पक्ष की ओर से सच्चाई से गवाही देने से जानबूझकर इनकार करता है जिसने उसे बुलाया था।[20] उसका बयान उसके पिछले बयान से अलग हो सकता है उन मामलों में जहां वह बाद में पक्षद्रोही हो गया, आम तौर पर गवाह संरक्षण काफी न होने के कारण । न्यायालय उसकी गवाही को स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है यदि यह मामले के लिए महत्वपूर्ण है और अगरउन्हें उसके पक्षद्रोही होने का शक है।[21] सिर्फ इसलिए कि गवाह उस पक्ष के मामले की सहायता नहीं करता जिसकी ओर से वह शुरू में साक्ष्य दे रहा था, इसका मतलब यह नहीं है कि उसे न्यायालय में स्वीकार नहीं किया जा सकता, खासकर जहां इसे अन्य विश्वसनीय साक्ष्य द्वारा सिद्ध किया जा सकता है।[22]
ये वर्ग एक-दूसरे में मिल सकते हैं, जैसे कि एक गवाह हितबद्ध और संबंधित दोनों हो सकता है या एक हितबद्ध प्रत्यक्षदर्शी हो सकता है।[23] इसके अलावा, जब न्यायालय को किसी विशेष गवाह के पक्षद्रोह का निर्णय करना होता है, तो इस वर्गीकरण को ध्यान में रखना पड़ता है।
बुलाने वाले पक्ष के आधार पर
बुलाने वाले पक्ष के आधार पर कानूनी कार्यवाही के संदर्भ में, गवाहों को तीन प्रकार है, जो उन्हें प्रस्तुत करने वाले पक्ष तय करते हैं । गवाहों के तीन प्रकार ये हैं:
- अभियोजन गवाह (प्रॉसिक्यूशन विटनेस ) (पीडब्ल्यू): अभियोजन पक्ष इन गवाहों को क्रम से प्रस्तुत करता है, उन्हें पहचान के लिए संख्याएं देता है। उन्हें पी.डब्ल्यू.-१, पी.डब्ल्यू.-२, आदि के नाम दिए जाते हैं।। अभियोजन गवाह वे व्यक्ति होते हैं जो आरोपी के खिलाफ अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन करने वाले बयान देते हैं।
- बचाव पक्ष के गवाह (डिफेन्स विटनेस) (डी.डब्ल्यू.): बचाव टीम इन गवाहों को बुलाती है और उन्हें डी.डब्ल्यू.-१, डी.डब्ल्यू.-२, आदि के रूप में संदर्भित किया जाता है। बचाव पक्ष के गवाह आम तौर पर वे व्यक्ति होते हैं जो अभियुक्त के पक्ष में बयान या साक्ष्य देते हैं और अभियोजन पक्ष को चुनौती देने का उद्देश्य रखते हैं।
- न्यायालय के गवाह (कोर्ट विटनेस) (सीडब्ल्यू): ये गवाह स्वयं न्यायालय द्वारा प्रस्तुत किए जाते हैं और उन्हें सी.डब्ल्यू.-१, सी.डब्ल्यू.-२, आदि केनाम दिए जाते हैं।न्यायालय के गवाह वे व्यक्ति होते हैं जो न्यायालय को निष्पक्ष और खरा फैसला करने में सहायता करने के लिए संबंधित जानकारी या साक्ष्य प्रदान करते हैं। इनमें विशेषज्ञ, कानून अधिकारी, या मामले से संबंधित विशेष ज्ञान रखने वाले व्यक्ति शामिल हो सकते हैं।
गवाहों के लिए न्यायालय आधारिक संरचना
न्यायालयों में गवाहों के लिए एक गवाह कक्ष होता है ताकि गवाहों की आसानी से जांच और पूछताछ की जा सके और न्यायाधीश उन संबंधित प्रश्नों को पूछ सके जिसके जवाब उसे लगता है कि गवाह को देने कीआवश्यकता है।[24]
हाल ही में, न्यायालयों ने दूर के स्थानों से आने वाले गवाहों को सुविधाएं देने के लिए न्यायालय परिसरों में गवाह शेड स्थापित करना शुरू कर दिया है ताकि गवाह बिना किसी झुकाव और दबाव के अपने बयान दे सकें। उन्हें ये परख है कि एक मामला पूरी तरह से एक गवाह के बयान पर निर्भर हो सकता है और इसलिए उन्होंने उनकी सुरक्षा के लिए ये कदम उठाए हैं।[25] यह गवाह संरक्षण के लिए व्यापक विधायी ढांचे का पालन कर रहा है, जिसकी चर्चा विधि आयोग की 14वीं[26] और 154वीं[27] रिपोर्ट के साथ-साथ राष्ट्रीय पुलिस आयोग की ४थी रिपोर्ट में की गई है।[28]
सर्वोच्च न्यायालय ने स्मृति तुकाराम बडादे विरुद्ध महाराष्ट्र राज्य और अन्य मामले में कमजोर गवाहों के साक्ष्य को रिकॉर्ड करने के लिए एक सुरक्षित वातावरण बनाने के लिए सुविधाओं के महत्व पर चर्चा की। मामले में "कमजोर गवाह" की परिभाषा का विस्तार करने की सिफारिश की गई ताकि बाल गवाहों के अलावा विभिन्न वर्गों को शामिल किया जा सके, जैसे किआयु और लिंग का ध्यान किये बिना यौन उत्पीड़न पीड़ित[29] और 'मानसिक बीमारी'[30] वाले गवाह। न्यायालय ने उच्च न्यायालयों को कमजोर गवाह बयान केंद्र योजना को अपनाने और निर्देशों के पालन की निगरानी तथा प्रत्येक जिले में बयान केंद्रों की आवश्यकता का आकलन करने के लिए एक इन-हाउस स्थायी कमजोर गवाह बयान केंद्र समिति स्थापित करने का निर्देश दिया। उच्च न्यायालयों ने इसके लिए अनुपालन रिपोर्ट जारी की है।[31]
आधिकारिक डेटाबेस में उपस्थिति
गवाहों से संबंधित किसी भी डेटाबेस में कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है। परन्तु , आधिकारिक डेटाबेस में अपलोड किए गए न्यायालय रिकॉर्ड और मामले की फाइलों में उल्लेख किया जाता है यदि उस विशेष मामले में कोई गवाह थे।
गवाह के साथ संलग्न शोध
आपराधिक न्याय प्रक्रिया में गवाह: शत्रुता और गवाहों से जुड़ी समस्याओं का एक अध्ययन
ह अध्ययन देश के चार राज्यों में गवाहों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों का उनके अनुभव पर आधारित वर्णन करता हैऔर आपराधिक न्याय एजेंसियों के साथ उनकी बातचीत के दौरान गवाहों द्वारा अनुभव की जाने वाली समस्याओं पर प्रकाश डालता है। रिपोर्ट में गवाह संरक्षण, गवाह शत्रुता, और गवाह सहायता दृष्टिकोण की आवश्यकता को महत्वपूर्ण मुद्दे बताया गया है जिन्हें सुधारने की आवश्यकता है।[32]
संदर्भ
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