Police Station (Hindi)

From Justice Definitions Project

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पुलिस थाना या पुलिस स्टेशन  किसे कहते  है?

पुलिस स्टेशन (जिसे स्टेशन हाउस, थाना या कोतवाली भी कहा जाता है ) एक दिए गए क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कार्यात्मक इकाई है जहां से पुलिस कानून और व्यवस्था बनाए रखने, मामलों की जांच आदि के अपने कार्य करती है। पुलिस  निम्नलिखित कार्यों के लिए जिम्मेदार है: (i) अपराधों का पंजीकरण, (ii) स्थानीय गश्त, (iii) जांच, (iv) विभिन्न कानून और व्यवस्था की स्थितियों को संभालना (जैसे, प्रदर्शन और हड़ताल), (v) खुफिया जानकारी इकट्ठा  करना, और (vi) अपने क्षेत्राधिकार में सुरक्षा सुनिश्चित करना। गश्त और निगरानी करने के लिए एक पुलिस स्टेशन  के  कई पुलिस चौकियां हो सकती हैं।एक पुलिस स्टेशन को कई बीट्स में बांटा जाता है, जो कि गश्त, निगरानी, खुफिया जानकारी एकत्र करने आदि के लिए हर एक बीट पुलिस कांस्टेबल को सौंपी जाती हैं। [1]

पुलिस स्टेशनों को निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • मेगा या महानगरीय शहर पुलिस स्टेशन,
  • शहरी पुलिस स्टेशन, ग्रामीण पुलिस स्टेशन और
  • विशिष्ट पुलिसिंग परिस्थितियों पर आधारित अन्य उद्देश्य-उन्मुख पुलिस स्टेशन जैसे:
    • महिला पुलिस थाना,
    • रेलवे पुलिस थाना,
    • यातायात/सड़क दुर्घटना पुलिस थाना,
    • समुद्रतटीय  पुलिस थाना , और
    • विशेष पुलिस स्टेशन जैसे क्राइम ब्रांच, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो, खुफिया शाखा आदि के अंतर्गत स्थापित|

अधिकांश नागरिक पुलिस स्टेशन से परिचित हैं क्योंकि यहीं पर एफआईआर दर्ज की जाती हैं और आपराधिक न्याय प्रक्रिया शुरू होती है।

पुलिस स्टेशन की आधिकारिक परिभाषा

दंड  प्रक्रिया संहिता के अनुसार, अपराधों को पुलिस स्टेशन में दर्ज किया जाना चाहिए और पुलिस का निवारक, जांच और कानून व्यवस्था का काम वहीं से किया जाता है। सीआरपीसी के तहत, "पुलिस स्टेशन" को इस प्रकार से परिभाषित किया गया है:

"कोई भी पद या स्थान जो सामान्यतः या विशेष रूप से राज्य सरकार द्वारा पुलिस स्टेशन घोषित किया गया हो, और इसमें राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में निर्दिष्ट कोई भी स्थानीय क्षेत्र शामिल है"। [2]

पुलिस स्टेशन की परिभाषा में प्रयुक्त 'पोस्ट' शब्द किसी भी एक ऐसे स्थान को संदर्भित करता है जहां पुलिस अधिकारी तैनात हैं। [3] एक पुलिस चौकी पुलिस स्टेशन से अलग होती है क्योंकि 'पुलिस चौकियां' पुलिस स्टेशनों के अधीन स्थापित की जाती हैं, ताकि पुलिस की पहुंच बढ़े और तेज हो सके और जनता को पुलिस सहायता आसानी से मिल सके। एक पुलिस चौकी पुलिस स्टेशन नहीं है क्योंकि यहां एफआईआर दर्ज नहीं की जाती हैं और जांच नहीं की जाती है। हालांकि, एफआईआर दर्ज यहां की जाती है और पंजीकरण के लिए पुलिस स्टेशन को भेजी जाती है। एक बार पंजीकृत होने के बाद एफआईआर वापस चौकी भेज दी  जाती है और कानून के अनुसार जांच शुरू करने और इसके जांच करके निपटने के लिए किसी विशेष अधिकारी या हेड कांस्टेबल को एफआईआर सौंप दि जाती है।

प्रभारी अधिकारी और क्षेत्राधिकार

इस योजना का केंद्रबिंदु पुलिस स्टेशन का प्रभारी अधिकारी होता है, जिसे आमतौर पर स्टेशन हाउस अधिकारी (एसएचओ) के रूप में जाना जाता है। विशेष रूप से शहरों और महानगरीय क्षेत्रों में पुलिस स्टेशन का प्रभारी अधिकारी एक पुलिस निरीक्षक होता है। बहुत बड़े पुलिस स्टेशन का प्रभारी अधिकारी एक पुलिस उप अधीक्षक (डीएसपी) के रैंक का हो सकता है; जबकि शहरी और ग्रामीण पुलिस स्टेशनों के लिए क्रमशः निरीक्षक और उप-निरीक्षक प्रभारी हो सकते हैं। [4]

किसी विपरीत स्थिति में  किसी अधिकारी की अनुपस्थिति में, पुलिस स्टेशन और एसएचओ का क्षेत्राधिकार एक समान होता है। [5]

एसएचओ का स्थानीय क्षेत्राधिकार

गैर-संज्ञेय अपराध संज्ञेय अपराध
सीआरपीसी की धारा 155 सीआरपीसी की धारा 156
एसएचओ का क्षेत्राधिकार ऐसे अपराधों पर होता है जो पुलिस स्टेशन की सीमाओं के भीतर किए गए हों। एसएचओ को ऐसे अपराधों की जांच करने का अधिकार है जिनकी जांच या विचारण का अधिकार ऐसे पुलिस स्टेशन की सीमाओं के भीतर के स्थानीय क्षेत्र पर क्षेत्राधिकार रखने वाले न्यायालय को अध्याय XIII के प्रावधानों के तहत होगा।

स्थानीय क्षेत्राधिकार से बाहर शक्ति के प्रयोग के उदाहरण:

अपराधी की खोज में: धारा 48 प्रावधान करती है कि पुलिस अधिकारी अपने क्षेत्राधिकार से बाहर भारत में किसी भी स्थान पर जा सकता है किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए जिसे बिना वारंट के गिरफ्तार करने के लिए अधिकृत किया है। इसके अलावा, अगर पुलिस अधिकारी को किसी जगह के बारे में ऐसा लगता हैं, या उसके मानने का कारण है कि अपराध से संबंधित साक्ष्य उस जगह छिपाया जा सकता है या साक्ष्य को नष्ट किया जा सकता है, या वाहा मौजूद स्थानीय पुलिस स्टेशन आरोपी के साथ मिलीभगत से काम कर रहा हैं, तब वह पुलिस अधिकारी अपने क्षेत्राधिकार की स्थानीय सीमाओं से बाहर भी तलाशी ले सकता है ।

सुनवाई के दौरान जांच और परीक्षणों के लिए: धारा 177 किसी अपराध की जांच और परीक्षण के लिए एक 'सामान्य' स्थान का प्रावधान करती है। इस प्रकार, यह अनुसरण करता है कि एसएचओ अपने 'सामान्य' क्षेत्राधिकार से बाहर किए गए अपराधों की जांच कर सकता है।

आधिकारिक डेटाबेस में उपस्थिति

ई-कोर्ट इंडिया सेवाएं

किसी भी  न्यायालय के समक्ष आपराधिक मामले की स्थिति को ई-कोर्ट्स पर एफआईआर नंबर (जैसा कि दिखाया गया है) द्वारा खोजा जा सकता है। चूंकि प्रत्येक एफआईआर नंबर एक विशिष्ट पुलिस स्टेशन में/द्वारा पंजीकृत होता है, उपयोगकर्ता को उस सटीक पुलिस स्टेशन का पता होना चाहिए जिसने पहले मामला दर्ज किया था और ड्रॉपडाउन से स्टेशन का नाम चुनना होगा।

ई-कोर्ट्स पर दिए गए प्रत्येक  जिला न्यायालय वेबसाइट जिले के भीतर पुलिस स्टेशनों की सूची के साथ-साथ प्रत्येक जिले के लिए पुलिस स्टेशन और उनके लिए अधिकृत मजिस्ट्रेट की सूची प्रदान करती है।

प्रत्येक पुलिस स्टेशन मजिस्ट्रेट न्यायालय के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आता है। ई-कोर्ट्स वेबसाइट प्रत्येक जिले में पुलिस स्टेशनों की सूची और मजिस्ट्रेट न्यायालय का विवरण प्रदान करती है जो उन पर क्षेत्राधिकार का प्रयोग करेंगे।

ई-कोर्ट डेटाबेस में पुलिस स्टेशनों की उदाहरणात्मक ड्रॉपडाउन सूची यहां उपलब्ध हैhttps://districts.ecourts.gov.in/sites/default/files/MM%20Jurisdiction%20list.pdf

सीसीटीएनएस

अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम (सीसीटीएनएस) के तहत, भारत में प्रत्येक पुलिस स्टेशन के लिए अधिकारियों के विशिष्ट लॉगिन के साथ डेटा इनपुट और एक्सेस सक्षम किया गया है।[6]

इस परियोजना का उद्देश्य आपराधिक न्याय प्रणाली में डेटा साझाकरण को मजबूत करना और परिचालन दक्षता में सुधार करना है। सीसीटीएनएस निम्नलिखित पर केंद्रित करता है:

  • पंजीकरण
  • जांच
  • अभियोजन
  • खोज और बुनियादी रिपोर्टिंग

सीसीटीएनएस राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के समान विशिष्ट पहचानकर्ता का उपयोग करता है जिसमें देश भर के पुलिस स्टेशनों के अखिल–भारतीय 'पीएस कोड' शामिल हैं। इन्हें एनसीआरबी ऑल इंडिया पुलिस स्टेशन लिस्ट पर देखा जा सकता है। [7]

प्रत्येक पीएस कोड एक 7-अंकीय संख्या है। पहले 4 अंक उस जिले का जिला कोड दर्शाते हैं जहां पुलिस स्टेशन स्थित है और अगले 3 अंक परिवर्तनीय हैं और प्रत्येक पुलिस स्टेशन के लिए अलग हैं। उदाहरण के लिए- पार्लियामेंट स्ट्रीट पुलिस स्टेशन को 8165022 के रूप में कोड किया गया है, जिसमें 8165 नई दिल्ली का जिला कोड है, और इसके अगले तीन अंक यानी 022 नई दिल्ली जिले में विशेष पुलिस स्टेशन को दिया गया है।

राज्य पुलिस विभाग वेबसाइट्स

एनसीआरबी सूची के अलावा, कुछ राज्य पुलिस के विभाग, जैसे यूपी और कर्नाटक भी पुलिस स्टेशनों की सूची रखते हैं, और उन्हें कोड नंबर देते हैं।

यह सूची समान कोडिंग का पालन नहीं करती है और एनसीआरबी की पुलिस स्टेशनों की सूची में दिए गए कोड से भिन्न होती है।

पुलिस स्टेशन से जुड़े शोध

पुलिस संगठनों पर डेटा: पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो, भारत सरकार

बीपीआरडी ने 2005 से प्रत्येक वर्ष एक वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित की है। ये रिपोर्ट प्रणालीगत क्षमता को दर्शाने वाले संकेतकों की जांच करती हैं जैसे:

  • पुलिस - जनसंख्या अनुपात (पीपीआर)
  • प्रति पुलिस व्यक्ति क्षेत्र (एपीपी)
  • पुलिस क्षेत्र, रेंज, जिलें, सर्किल, पुलिस स्टेशन व पुलिस चौकियों की संख्या और
  • देश में विशेष सशस्त्र पुलिस बटालियनों की संख्या

भारत में पुलिसिंग की स्थिति रिपोर्ट 2019

कॉमन कॉज द्वारा तैयार की गई यह रिपोर्ट आधिकारिक डेटा और धारणा सर्वेक्षणों के संयोजन के माध्यम से भारतीय पुलिस सेवाओं की संरचनात्मक 'पर्याप्तता' का विश्लेषण करती है।

"पुलिस राज्य का सबसे पहचाना जाने वाला चेहरा भी है और एक पुलिस स्टेशन अनिवार्य रूप से संकट के समय में नागरिक का पहला संपर्क बिंदु होता है।"

सर्वेक्षण ने 2016-17 में पुलिस स्टेशन में मौजूद सुविधाओं जैसे कंप्यूटर, वाहन, बैठने की जगह, टेलीफोन या वायरलेस, शौचालय और पेयजल जैसी सुविधाओं का आकलन किया। सामान्य तौर पर, यह पाया गया हैं कि स्टेशनों में बुनियादी ढांचे की कमियां पुलिस कर्मियों पर गंभीर तनाव डालती हैं और प्रगति की जानी चाहिए।

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट्स

2019 और 2020 में प्रकाशित इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (IJR) पुलिस की जांच क्षमता का अध्ययन करती है और इस बात पर विचार करती है कि पुलिस स्टेशनों की पहुंच को आगे दिए गए मुद्दों को विचार में रख कर किस तरह मापा जा सकता है (i) कवर किए गए क्षेत्र या (ii) कवर की गई जनसंख्या के माध्यम से:

"...देश के विभिन्न क्षेत्रों में कुछ प्रतिनिधि राज्यों में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अलग-अलग पुलिस कर्मियों के फैलाव का एक तुलनात्मक अध्ययन बहुत बड़ी भिन्नता दिखाता है जो शहरी जनसंख्या में प्रति 675 व्यक्तियों पर एक पुलिसकर्मी से लेकर ग्रामीण जनसंख्या में प्रति 5,403 व्यक्तियों पर एक पुलिसकर्मी के अनुपात तक है। क्षेत्रफल के हिसाब से शहरी क्षेत्र में 7.9 वर्ग किमी के क्षेत्र के लिए एक पुलिस स्टेशन से लेकर ग्रामीण क्षेत्र में 1,069.7 वर्ग किमी के क्षेत्र के लिए एक पुलिस स्टेशन का अनुपात है।"

1981 में, एनपीसी ने सुझाव दिया कि एक ग्रामीण पुलिस स्टेशन द्वारा कवर किया जाने वाला औसत क्षेत्र 150 वर्ग किमी होना चाहिए। हालांकि 40 साल पुराना, यह एकमात्र उपलब्ध बेंचमार्क है और दोनों आईजेआर रिपोर्टें आकलन करती हैं कि विभिन्न भारतीय राज्य इस पर कैसे खरे उतरते हैं।

लिंग, अपराध और दंड: भारत में महिला पुलिस स्टेशनों से प्राप्त साक्ष्य

यह शोधपत्र लैंगिक हिंसा की रिपोर्टिंग पर महिला पुलिस स्टेशनों (डब्ल्यूपीएस) की स्थापना के प्रभाव की जांच करता है। प्रशासनिक अपराध की जानकारी  का उपयोग करते हुए और भारतीय शहरों में चरणबद्ध कार्यान्वयन का लाभ उठाते हुए, शोधपत्र पाया गया  है कि डब्ल्यूपीएस के खुलने से महिलाओं के खिलाफ अपराधों की पुलिस शिकायतों  में 29 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, और अधिकतर घरेलू हिंसा से प्रेरित परिणाम है। यह घटनाओं की रिपोर्टिंग को दर्शाता हैं और ऐसाप्रतीत होता है इस रिपोर्टिंग से  नारी हत्या या सर्वेक्षण-रिपोर्ट की गई घरेलू हिंसा में कोई बदलाव नहीं हुआ हैं। डब्ल्यूपीएस खुलने के बाद महिलाओं की श्रम आपूर्ति में वृद्धि का कुछ प्रमाण भी पाया  हैं, जो इस बात से संगत है कि हिंसा की शिकायत  करने की लागत कम होने पर महिलाएं अधिक सुरक्षित महसूस करती हैं।

पुलिस स्टेशन के विश्लेषण में चुनौतियां और क्षेत्रीय भिन्नताएं

आपराधिक मामलों के लिए ई-कोर्ट्स/सीआईएस में जानकारी  की कमी - 2020 में, दक्ष ने देखा कि प्रत्येक राज्य में जिला और तालुका न्यायालयों में "पुलिस स्टेशन" के रिक्त स्थान  अक्सर नहीं भरा जाता है:

यह "पुलिस स्टेशन" को एक प्रमुख विश्लेषणात्मक इकाई के रूप में उपयोग करने वाले व्यवस्थित शोध या विश्लेषण को रोकता है, जैसे कि कुछ अपराध सबसे अधिक कहां से उत्पन्न होते हैं।

अंग्रेजी हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में एक ही पुलिस स्टेशन के नाम की विभिन्न वर्तनी: जब न्यायालय रजिस्ट्री अधिकारियों द्वारा एक ही पुलिस स्टेशन का नाम मनुष्य द्वारा कंप्यूटर में   दर्ज (डिजिटलीकृत) किया जाता है तो इसकी वर्तनी अलग-अलग तरीकों से की जा सकती है। यह उन पुलिस स्टेशनों के बड़े पैमाने पे शोध या विश्लेषण को भ्रमित करता है जहां से आपराधिक मामले उत्पन्न होते हैं। थिंक टैंक्स और शोध संगठन दक्ष और विधि ने डेटा प्रविष्टि के लिए मानकीकृत ड्रॉपडाउन मेनू को अपनाने की सिफारिश की है।

ई-कोर्ट्स/सीआईएस डेटाबेस के साथ सीसीटीएनएस डेटाबेस में विशिष्ट पीएस संख्या का मिलान करने में कठिनाई: जबकि एनसीआरबी और सीसीटीएनएस प्रत्येक पुलिस स्टेशन के लिए एक विशिष्ट कोड का उपयोग करते हैं, भारत में अन्य डेटाबेस द्वारा पहचान के लिए समान विशिष्ट पहचानकर्ताओं का उपयोग नहीं किया जाता है। यह सिस्टम की अंतर-संचालनीयता के प्रयासों को कठिन बना सकता है क्योंकि पुलिस स्टेशनों को प्लेटफॉर्म के बीच आसानी से लिंक नहीं किया जा सकता।

आगे का रास्ता

ऐसे  भी जाना जाता है

स्टेशन हाउस, थाना, कोतवाली

सन्दर्भ

  1. PRS India. Police Reforms in India. (June 2017) https://prsindia.org/policy/analytical-reports/police-reforms-india#:~:text=Under%20the%20Constitution%2C%20police%20is,with%20ensuring%20law%20and%20order
  2. Sec 2(s). CrPC 1973. https://legislative.gov.in/sites/default/files/A1974-02.pdf
  3. P.R Nayak v. Union of India. Supreme Court of India. Dec 7, 1971. https://www.casemine.com/judgement/in/5609ab72e4b014971140c839
  4. Bureau of Police Research and Development (BPRD). "Indian Police: an Introductory and Statistical Overview". https://bprd.nic.in/WriteReadData/userfiles/file/1645442204-Volume%201.pdf
  5. Commonwealth Human Rights Initiative (CHRI). "Police Organisation in India" https://www.humanrightsinitiative.org/publications/police/police_organisations.pdf
  6. CCTNS CAS Citizen State User Manual. http://citizenportal.hppolice.gov.in:8080/citizen/kv/CCTNS_CAS_Citizen_State_User_Manual.pdf
  7. National Crime Records Bureau. All India Police Station List. https://ncrb.gov.in/sites/default/files/nrcb_news/NCRB_PS_List.xlsx